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पिता का दर्द

            पिता का दर्द (सच्चाई पर आधारित)
                                    ✍️ श्याम सुन्दर बंसल



एक छोटे से गांव की बात बताता हुं। जहां एक ऐसा परिवार रहता था ,उनके परिवार की किस्सो से तुमको वाकिफ कराता हुं। उस परिवार की बातें ही कुछ निराली थी हरपल रचती एक अलग अनोखी नयी कहानी थी। 
घर का बुजुर्ग राधेश्याम जीवन संगिनी मीना का साथ था। उनके तीन बेटे एक बेटी पर उनको नाज था। जहाँ भी जाते सर फक्र से उठाकर चलते थे। सब उनको राधा बाबु कहकर संबोधित करते थे। बड़े ही लाड प्यार से पाला अपने  बच्चों को था। बड़ा बेटा राजू थोड़ा सा मनचला था। किसी गलत संगत में न पड़ जाए पिता को ऐसा डर सताता था। जुहे की लत का वह शिकार हुआ चला था थोड़ा सा जो डाट क्या दिया उसको मौत को जाकर गले उसने लगाया था। न जाने उस पिता ने कैसे अपने मृत बेटे को कंधे पर उठाया था। उसने न जाने कितनी ही बार उस बेटे को अंगुली पकड़ उसको चलना सीखाया था। न जाने कैसे, कितना कठोर अपने दिल को बनाकर उसको अग्नि के हवाले किया था। अपने दिल का दर्द कभी किसी से उस राधेश्याम ने  जाहिर नहीं किया था। मन ही मन दर्द को सहना कभी किसी से जाहिर न करना बड़ा ही खुब आता था। दुःख में चुप सा रहना और प्यार सबसे बाँटना आता था। कभी किसी को जाहिर नहीं करता कितना दर्द दिल में समेटा हैं। उनका दुसरा बेटा थोड़ा सा निठल्ला हैं।काम का कच्चा, बाते भी कच्ची ,व्यवहार ऐसे जैसे अभी भी ४५की उम्र में बच्चा हैं।कि थी शादी इस लड़के ने जिसका नाम संजय था। संग उसकी पत्नी नीलम का साथ था। उसके दो बेटे हुए श्याम और नविन उनका नाम था। दादा राधेश्याम का दुलारा श्याम था बचपन से बीमार शरीर से थोड़ा पतला था। दिन रात बेटे बहू के झगड़े देखता एक पल को मिलता न  राधे श्याम को चैन था। संजय का बड़ा लड़का श्याम यही देख बड़ा हुआ था। बचपन से ही सहम सा गया था। फिर राधे श्याम के छोटे लड़के सुशील की बारी आई थी। उनसे अपनी जीवन संगिनी मनु को बनाई थी। सुशील को उस उपरवाले का आशीर्वाद था। जो घर पर दो पुत्रियां साइना, और आरची, का वास था। लक्ष्मी का रुप घर पर लेकर आई थी। सबके मन में दोनों बस गई थी। ऐसी इस परिवार की कहानी है कुछ अनोखी कुछ निराली यह श्याम की जबानी हैं। पिता राधेश्याम दोनों बेटो से खुश न था। क्योकि बुढ़ापे मे उसने कुछ पाया न था। जो हर बूढ़े माँ -बाप को जरूरत होती हैं। दिल में रखता हर बात कहता किसी से न कुछ था। जब भी अकेला होता राधे श्याम पता नहीं किन यादो मे खोया रहता। जीतना सहन कर सकता था ,हर हद तक अपने गम को पीता रहा। लेकिन उसके शरीर ने जवाब दे दिया उसके मस्तिष्क का मरीज बना दिया। आज वह लाचार हैं अपने बेटो के दो मीठे बोल को तरसा है। पता नहीं कब दोनों बेटो ने प्यार के दो मीठे बोल बोले होंगे। अपने पिता के हर गम को दुर करने की कोशिश किए होंगे। आज सभी अपने आप में खुश हैं पिता पर किसी का ध्यान न गया। यही सोच में पिता मरीज लाचार बन गया लेकिन आज भी अपने बेटे के उन चुभने वाली बातों से डरता हैं इसलिए वह मै ठीक हुं हर बार दूरभाष पर कहता हैं। 

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